कैसे एक संकोची मैड ने अपने जीवन की दिशा बदली |
सुशीला जब अपनी माँ के साथ घर लौट रही थी तो उसने अपनी उँगलियों के पैरों को देखा जो किशमिश की तरह सिकुड़ गए थे।बर्तन धोने के साबुन की महक उसके परिश्रमी हाथों में भरी हुई थी। उसिे गााँव की अन्य औरतों जैसी नौकरानी की इस जिंदगी में उसे घुटन होती थी । पुरुषवादी दमनकारी परंपराओं की जंजीरों में जकड़े होने की कारण वह अपनी जिंदगी के लिए कुछ बोल नहीं सकती थी।परंतु सुशीला मे जोश था और वह अपनी आकाँक्षाओं से कम पर समझौता करने वालों में नहीं थी ।
यहाँ उसके भाग्य ने साथ दिया- उसके मालिक ने उसे ‘आत्म ननभतर’ में स्कूटी चलाना सीखने की नौकरी का प्रस्ताव दिया ।कौन जानता था कि दो पहिया चलाना एक वंचित महिला को उज्वल भविष्य की ओर ले जाएगा।
ये कहानी एक ऐसी महिला की है जिसने एक मामूली स्री से महिला सक्शक्तीकरण की पहचान बनने तक का सफर तय किया था।अनगिनत घरों में एक नौकरानी रूप मे हर दिन घंटों थकान देने वाला परिश्रम करना कठिन था और उसके बाद जो कुछ उसे मिलता था, वो उसकी जरूरतों के हिसाब से कम था। अपने भाइयों से ‘आत्म ननभरत ’ में स्कूटी चलाना सीखने की अनुमति पाने को उन्हें समझाना बहुत ही कठिन था । अपनी माँ के सहारे से अंततः वह उन्हे राजी कर पाई ।
एक बार जैसे ही उसे आजादी मिली, फिर कोई उससे रोक नहीं पाया। अपनी उड़ान मे उसने अपने आसपास की महिलाओं के पंखों को भी हवा दी। ‘आत्म ननभतर’ की एक पुरानी प्रशिक्षक होने के नाते सुशीला ने 500 से अधिक महिलाओं को स्कूटी चलाने का प्रशिक्षण दिया। उसकी जिंदगी भी पूरी तरह बदल गई थी । उसने अपने पैसों से अपने लिए एक भूखंड भी खरीद लिया, परंतु ये कहानी कि वह आर्थिक रूप से स्वतंत्र महिला थी, एक अल्पोक्तित ही होगी। वह अब अपने आस-पास की महिलाओं के लिए एक प्रेरणा थी, गरीबी और पुरुषवादी सोच के घनघोर बादलों को चीरती हुई एक किरण ।
पर सबसे महत्वपूणत था, सुशीला का एजेंसी लेना और अपनी बहनों के लिए आवाज उठाना। उसिे गााँव की लड़कियां जब उसे नई चमचमाती ब्राउन होंडा एक्टिवा चलाते देखती तो उसमे उन्हें अपने लिए उम्मीद नजर आती ।
सुशीला खुश थी पर पूरी तरह संतुष्ट नहीं थी । उसे एक जगह ठहर जाना पसंद नहीं था । उसकी अगली चुनौती ? वह घर पर संक्रीड मानसिकता के लोगों से अपने गााँव के घर मे शौचालय बनवाने के लिए लड़ रही थी, जहां पर अब भी महिलायें खुले में शौच के लिए जाती थीं । वह अपनी भााँजियों को मूलभूत स्वच्छता और शिक्षा उपलब्ध कराएगी, जो उसे कभी नहीं मिलीं ।
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